Changes

}}
[[Category:गज़ल]]
<poem>
तेरे होते हुए महफ़िल में जलाते हैं चिराग़
लोग क्या सादा हैं सूरज को दिखाते हैं चिराग़
तेरे होते हुए महफ़िल में जलाते अपनी महरूमियों पे शर्मिन्दा हैं चिराग़ <br>लोग क्या सादा हैं सूरज को दिखाते ख़ुद नहीं रखते तो औरों के बुझाते हैं चिराग़ <br><br>
अपनी महरूमियों बस्तियाँ चाँद सितारों पे शर्मिन्दा हैं <br>बसाने वाले ख़ुद नहीं रखते तो औरों के कुर्रा-ए-अर्ज़ बुझाते जाते हैं चिराग़ <br><br>
बस्तियाँ चाँद सितारों पे बसाने वाले <br>क्या ख़बर है उनको के दामन भी भड़क उठते हैं कुर्रा-ए-अर्ज़ बुझाते जाते जो ज़माने की हवाओं से बचाते हैं चिराग़ <br><br>
क्या ख़बर है उनको के दामन भी भड़क उठते हैं <br>जो ज़माने की हवाओं से बचाते हैं चिराग़ <br><br> ऐसी तारीकीयाँ आँखों में बसी हैं "फ़राज़"<br>रात तो रात हम दिन को जलाते हैं चिराग़ <br><br/poem>
Delete, KKSahayogi, Mover, Protect, Reupload, Uploader
19,164
edits