भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

तेरौ जनम सुफल है जाय / ब्रजभाषा

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

   ♦   रचनाकार: अज्ञात

तेरौ जनम सुफल है जाय लगायलै रज ब्रजधाम की। टेक।
काट दें पाप तेरे ब्रजराज,
लगाय लै परिकम्मा गिर्राज
बनें सब तेरे बिगड़े काज।

दोहा- काम तेरे बिगड़े सभी, दें बनाय वृजचन्द।
करते भव से पार हैं, वे माधवचन्द मुकुन्द॥
हृदय के पट खोल और, करि झाँकी श्याम की॥ 1॥

मानसी गंगा कर स्नान,
प्रेम से चरनामृत कर पान,
लगा मंसा देवी से ध्यान।

दोहा- दर्शन कर महादेव के, पूरन करें मुराद।
चकलेश्वर महादेव जी, हरें तेरी सब व्याधि॥
हरें तेरी सब व्याधि, लगा लौ तू शिव नाम की॥ 2॥

दान घाटी पै दूध चढ़ाय,
प्रेम सै दै परसाद लगाय,
बाँट विप्रन को भोग उठाय।

दोहा- परिकम्मा कर नेम से, सात बार तू यार।
दण्डौती कर प्रेम से, है जाय भव से पार॥
हे जाय भव से पार, लगा रट तू राधेश्याम की॥

लगाय लै गोता चलती टैम,
धार कै हर पूनों कौ नैम,
करियो दर्शन उठिते खैम।

दोहा- कीने जितने पाप हैं, धुलें सभी अज्ञान।
काम-क्रोध और मोह को तजि मुरख नादान॥
कहते ‘गेंदालाल’ भजन कर पुतली चाम की॥