भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

तेसरॅ सर्ग / उर्ध्वरेता / सुमन सूरो

Kavita Kosh से
Rahul Shivay (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 02:59, 12 मई 2016 का अवतरण (Rahul Shivay ने तेसरॅ सर्ग / उर्ध्वरेता / अमरेन्द्र पृष्ठ तेसरॅ सर्ग / उर्ध्वरेता / सुमन सूरो पर स्थाना...)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

हिमगिरि के ढालॅ पर पहड़ी सुनसान छै
सेव-नासपाती के फरलॅ बगान छै
खुमानो-चेरी के फूलॅ सें सजलॅ
देवदार-चीड़ॅ के छाया में बसलॅ।

छन्है में सब थकान दूर करै तीनों बॉव;
छिलकै छै कण-कण में परम चेत, परम आव।

होमॅ के धूआँ सें करछाहा पात-पात
उपरॅ में झलकै छै धवल गिरी-धवल गात!
मेघॅ के जेरॅ जिराबै छै कोरा में
लागै छै दृश्य-

जना पद्माशन शंकर के
आगू में पुजलॅ छै नील नील-स्वच्द नील
लाख-लाख वारिजात।
नीचे में फुटलॅ छै तीन सात झरना के
त्रिगुण ताप धरती पर बहलॅ छै।
तै नीचें वेगवन्त नद्दी में जीवन के
चिर अटूट तेज धार सजलॅ छै।

मुनिवर वशिष्ठॅ के आश्रम छै पहड़ी पर
कासॅ के कूसॅ के छप्पर छै लकड़ी पर
जिनगी के ठाठ जेना तिकड़ी पर

साफ-स्वच्छ चौकॅ पर
कलशॅ-पुरहरँ छै ध्यानमग्न;
झलकै अखण्ड दीप छेदॅ सें

वेदी पर ज्ञान-मग्न!
निनभरसें अग्निदेव
होमकुण्ड-आसन पर
मानॅ छै पहड़ी जोगासन पर।

बैठी पगुराबै छै नन्दिनो
सट्टी केॅ खाढ़ॅ छै लेरू
सूँघै छै मूँ कखनू
ढूँसै छै अगुलका चेरू।

कनखी सॅ देखै छै बच्चा केॅ
कान पटपटाय छ
”बिरमै के बेरा में दुष्टामी?”
शायद समझाय छै।

अपरूप सुन्दरता टपकै छै
आँखी सें नेह बना
चाकरॅ माथा पर
गोल-गोल सोना के सींग

जेकरा में जड़लॅ छै
मिहीं-मिहीं हीरा के बुकनी।
गल्ला में गिरमल हार
नीलम के मरकत के, मुक्ता के
ऐश्वर्य शालिनी।

देखी केॅ ललचै छै मॅन
आठमॅ बसू प्रभासॅ बहुरिया के।
”हिमगिरि पर देखलियै रुप बहुत-
कृष्णसार, अष्टापद,
यक्ष आरो किन्नर नवतुरिया के
हे पिया! है रं नै मिललै अपरुप सुन्दरता
लॅे भागॅ खोलो केॅ।“

”बन्द करॅ बोलो केॅ
की काम पड़तै स्वरलोकॅ में बोलॅ तेॅ?”

”देॅ देवै सखि कॅे उपहार यहीं, खालॅ तेॅ,
एक बात राखी लेॅ, प्रेमॅ के साखो लेॅ।“

प्रेमॅ के आग्रह ठुकराबेॅ के?
ओकरही पर प्रेमी, समझावेॅ के?
सभे मिली लै उड़लै चोरी सें
सत भेलै मैलॅ कमजोरी सें।

मधुमती

बसूँ डुबाय देलकै कूल-खानदान हे!
कूल-खानदान हे!
हे-हे बहिना,
भेलै की-की निनान हे?
हे-हे बहिना!!

सुचेता

मुनिवर वशिष्ट जबॅे ऐलै आश्रम हे!
देखी केॅ सूनसान भेलै भरम हे!
खूगी केॅ गेली होतै गाय नद्दी-तीर हे?
मुनि पत्नी हियरा हड़हड़ अधीर हे!

टिल्हा पर खाढ़ॅ भै बेकल हँकाय हे!
सबटा आवाज छुच्छे-छुच्छे घुरोआय हे!
अरून्धती-मुखड़ा भेलै मलीन हे!
बेटी के गेला पर माय जेना दीन हे!

मुनिवर ने फेरलकै दाढ़ी पर हाथ हे!
केकरॅ सरारत ई, केकरॅ उतपात हे?
कोन पनीराजॅ के ई छेकै काम हे?
आसन पर बैठी केॅ साधनकै ध्यान हे!

जेना की ऐना में झलकै सब रूप हे!
ध्यानॅ में आठो के उगलै सरूप हे!
मुनिवर ने खोललकै आँख लाल-लाल हे!
”स्वरलो’ के बासी की ऐहनॅ कंगाल हे?”

मिरतू भवन में छेकै चोरी दुष्पाप हे
चुरू में जल लेॅ केॅ देलकै सराप हे-
”मिरतु लेाक में भोगॅ कर्मॅ के फॅल हे!
जन्मी केॅ मुनिवर ने छोड़लकै जॅल हे!

तड़की उठलै बिजली छूबी स्वरलोकॅ के दूर कछार
अंतहीन सागर बिचलित छै दौड़े छै ज्वारॅ पर ज्वार
अंधड़ में जेना काँपै छै थर-थर पिपरॅ के पत्ता,
मुनी-सरापॅ सें काँपी उठलै स्वरलोकॅ के छता!

सत के शील हेरैलै बहिना! जहिना घो गोबर में जाय,
माथॅ धून बसू-बसूनीं छुटकारा के कोन उपाय?