भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"तोड़ो-तोड़ो , जितनी भी हैं अब तोड़ो / दीपक शर्मा 'दीप'" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
('{{KKGlobal}} {{KKRachna | रचनाकार= दीपक शर्मा 'दीप' }} {{KKCatGhazal}} <poem> तोड़...' के साथ नया पृष्ठ बनाया) |
|||
पंक्ति 5: | पंक्ति 5: | ||
{{KKCatGhazal}} | {{KKCatGhazal}} | ||
<poem> | <poem> | ||
− | तोड़ो-तोड़ो , जितनी भी हैं अब तोड़ो | + | तोड़ो- तोड़ो, जितनी भी हैं अब तोड़ो |
− | हद की आँखे खुलने तक | + | हद की आँखे खुलने तक बेढब तोड़ो |
मज़हब केवल बाँट रहा है दुनिया को | मज़हब केवल बाँट रहा है दुनिया को | ||
− | माला-घंटी-मंदिर-मस्ज़िद सब तोड़ो | + | माला- घंटी- मंदिर- मस्ज़िद सब तोड़ो |
− | आधी रात चलें तो , चलने पाएँ हम | + | आधी रात चलें तो, चलने पाएँ हम |
− | करतूतों से लेकर हर करतब , तोड़ो | + | करतूतों से लेकर हर करतब, तोड़ो |
− | देखो केवल तोड़-ताड़ के रखना मत | + | देखो केवल तोड़- ताड़ के रखना मत |
− | गड्ढे में दफ़ना के आना | + | गड्ढे में दफ़ना के आना जब तोड़ो |
− | ऐसे-वैसे , जल्दी-वल्दी मत करना | + | ऐसे- वैसे, जल्दी- वल्दी मत करना |
− | घात लगाओ ,मौक़ा देखो तब तोड़ो | + | घात लगाओ, मौक़ा देखो तब तोड़ो |
</poem> | </poem> |
20:32, 18 सितम्बर 2016 के समय का अवतरण
तोड़ो- तोड़ो, जितनी भी हैं अब तोड़ो
हद की आँखे खुलने तक बेढब तोड़ो
मज़हब केवल बाँट रहा है दुनिया को
माला- घंटी- मंदिर- मस्ज़िद सब तोड़ो
आधी रात चलें तो, चलने पाएँ हम
करतूतों से लेकर हर करतब, तोड़ो
देखो केवल तोड़- ताड़ के रखना मत
गड्ढे में दफ़ना के आना जब तोड़ो
ऐसे- वैसे, जल्दी- वल्दी मत करना
घात लगाओ, मौक़ा देखो तब तोड़ो