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तोड़ो-तोड़ो , जितनी भी हैं अब तोड़ो / दीपक शर्मा 'दीप'

 
तोड़ो- तोड़ो, जितनी भी हैं अब तोड़ो
हद की आँखे खुलने तक बेढब तोड़ो
 
मज़हब केवल बाँट रहा है दुनिया को
माला- घंटी- मंदिर- मस्ज़िद सब तोड़ो
 
आधी रात चलें तो, चलने पाएँ हम
करतूतों से लेकर हर करतब, तोड़ो
 
देखो केवल तोड़- ताड़ के रखना मत
गड्ढे में दफ़ना के आना जब तोड़ो
 
ऐसे- वैसे, जल्दी- वल्दी मत करना
घात लगाओ, मौक़ा देखो तब तोड़ो