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तोता-मैना / प्रतिभा सक्सेना

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बेटा तरु पर बैठा तोता, दूर-दूर उड़ जाता,
मैना जैसी चहक रही तू, मेरी रानी बिटिया,
बड़ा घड़ा है बेटा जल का उठता नहीं उठाए,
प्यास बुझा शीतल कर देती, बेटी छोटी- लुटिया .


कोना-कोना महक भर रही प्यार भरी ये बोली,
तेरे कंठ स्वरों में किसने ऐसी मिसरी घोली!
बेटा उछल-कूद कर करता रहता हल्ला-गुल्ला
दुनिया भर की बातें कहता-सुनता, बड़ा चिबिल्ला!


जूतों को उछाल देता वह फेंक हाथ का बस्ता,
डाल जुराबें इधर-उधर जैसे ही घर में घुसता
तुझे छेड़ कर हँसता, करता मनमानी शैतानी,
पर रूठे तो तुरत मनाता, मेरी गुड़िया रानी!


दोनो हैं दो छोर, जिन्हें पा भर जाता हर कोना,
राखी, सावन, दूज, दिवाली हर त्योहार सलोना.
घर-देहरी सज गई कि जैसे राँगोली पूरी हो,
हँसने लगता घर ज्यों बिखरी फूलों की झोली हो!


घर से बाहर नहीं हुआ करते सब अपनों जैसे,
तरह-तरह के लोगों में कुछ होंगे ऐसे-वैसे .
तेरा भइया तुझे छाँह देगा इस विषम डगर में,
उसके साथ निडर हो लड़ना, इस संसार-समर में!


बाहर की दुनिया में वह है चार नयन से चौकस,
कहीं न मेरी बहिना पर आ जाए कोई संकट .
डोली में बिठला कर तुझको बिदा करेगा जिस दिन,
बार-बार टेरेगा तुझको, इस घर का खालीपन!


मेरी दो आँखें तुम दोनों, तुम ही असली धन हो
जीजी औ'भइया का सुखमय प्यार भरा जीवन हो!
साथ निभाना इक-दूजे का बाँध नेह की डोरी.
तुम हो मेरे पुण्य, और तुम हँसी-खुशी हो मेरी!