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तोर दुलार के आँच से / राज मोहन

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तोर दुलार के आँच से
चूल्हा बरे है
तोर आँचल के हवा से
आँखि के ज्योति से
अंजोर रहे हैं
तोर कंगन के आवाज से
सबेर जगे हैं
सोच विचार के गोना होइगे
जुड़गइल नाता तोर साथ
देंहि के सब सोना गलगे
तोर देहि के आँच में
चुपचाप बैठल बाटे
झलवा के बगले
कब झूलब हम संगे
कब झूलब हवा में साथे
तोर हाथ के रेखा से
तकदीर हमार बहे।