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"तोहफ़ा है नायाब ख़ुदा का दुनिया जिसको कहती माँ / शाहिद मिर्ज़ा शाहिद" के अवतरणों में अंतर

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एक समन्दर ममता का है फिर भी कितनी प्यासी माँ
 
एक समन्दर ममता का है फिर भी कितनी प्यासी माँ
  
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आमना हो या दाई हलीमा रूप जुदा हो सकते हैं<ref>(ये मिसरा यूं भी कहा गया है) देवकी हो, या हो वो यशोदा, रूप जुदा हो सकते हैं</ref>
 
माँ तो आख़िर माँ होती है, ये भी माँ है वो भी माँ
 
माँ तो आख़िर माँ होती है, ये भी माँ है वो भी माँ
  

22:24, 7 नवम्बर 2010 के समय का अवतरण

तोहफ़ा है नायाब ख़ुदा का दुनिया जिसको कहती माँ
हर बच्चे की माँ है लेकिन अपनी माँ है अपनी माँ

छाँव घनेरे पेड़-सी देकर धूप दुखों की सहती माँ
एक समन्दर ममता का है फिर भी कितनी प्यासी माँ

आमना हो या दाई हलीमा रूप जुदा हो सकते हैं<ref>(ये मिसरा यूं भी कहा गया है) देवकी हो, या हो वो यशोदा, रूप जुदा हो सकते हैं</ref>
माँ तो आख़िर माँ होती है, ये भी माँ है वो भी माँ

माँ की कमी महसूस न हो अब छोटे भाई-बहनो को
चंचल लड़की बँटकर रह गई आधी बाजी आधी माँ

माँ न रही तो सब्र करो और ये भी तो सोचो शाहिद
माँ से ख़ुद महरूम रही है 'हव्वा' जो है सबकी माँ

शब्दार्थ
<references/>