भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

तोहरा मन पड़ते मनवा मगन हो गइल / गुलरेज़ शहज़ाद

Kavita Kosh से
Jalaj Mishra (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 17:11, 5 जून 2020 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार= |अनुवादक= |संग्रह= }} {{KKCatGhazal}} <poem> तोहर...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

तोहरा मन पड़ते मनवा मगन हो गइल
कारी रतिया सोहागिन नियन हो गइल

आरती के बरल दीप लागेलू तू
तोहरा देखि के पावन नयन हो गइल

बिना मतलब के कतहूँ निहारत रहे
रूप में रब निहारत ई मन हो गइल

रूप पानी में कांपत चनरमा नियन
नेह पानी के चूमत पवन हो गइल

कुछ ना कहलू जे तू चुप रह गईनीं हम
आँखे आँखे में सातो बचन हो गइल