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त्रिलोचन / केदारनाथ अग्रवाल

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दूसरे
और-और कवि
आज भी
अब भी
उम्र और अक्ल में
उनसे छोटे-बहुत छोटे-सच में बौने
बड़े हो गए
रातों-रात
छत पर चढ़ गए
त्रिलोचन से
बेमतलब
बिलावजह
बेभाव
बड़बड़ाकर
कथ्य और शिल्प में
जगह-जगह गड़बड़ाकर
और वह
अब भी, आज भी
कलम भाँजता है
भँजी को फिर भाँजता है
जैसे मुगदर

रचनाकाल: २८-०८-१९७०