Last modified on 1 अक्टूबर 2019, at 14:45

त्रोय के लोग / कंस्तांतिन कवाफ़ी / सुरेश सलिल

अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 14:45, 1 अक्टूबर 2019 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार= कंस्तांतिन कवाफ़ी |अनुवादक=सुरे...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

हमारे प्रयास उन लोगों के प्रयासों की तरह हैं
जो अनर्थ पर आमादा हैं
हमारे प्रयास त्रोय के लोगों के प्रयासों से हैं ।

हमने बस शुरू ही किया है कि कहीं पहुँच पाएँ
कि थोड़ी-सी शक्ति अर्जित कर पाएँ
थोड़ा निडर और आशावान हो पाएँ,
जबकि कुछ न कुछ हरदम हमें रोकने पर तुला हुआ है — 

एकीलीस खाई में से उछाल भरकर
सामने आ खड़ा होता है, और
अपनी प्रचण्ड चीख़ों से
हमें भय से भर देता है ।

हमारे प्रयास त्रोय के लोगों के प्रयासों से हैं
हम सोचते हैं अपना भाग्य हम बदल देंगे
दृढ़ता और साहस से — 
लिहाजा बढ़ते हैं बाहर की ओर लड़ने को तत्पर
किन्तु जब कोई बड़ा संकट आ खड़ा होता है सामने
हमारी निडरता और दृढ़ता उड़न-छू हो जाती है,

हकलाने लगती है हमारी ज़िन्दादिली
लकवाग्रस्त हो जाती है
और हम दीवारों के चारों ओर बेतहाशा दौड़ने लग जाते हैं
पीठ दिखा कर अपने को बचाने की कोशिश करते हुए

तब भी निश्चित है हमारी असफलता
वहाँ दीवारों के ऊपरी सिरे पर शुरू हो चुका है विलाप — 
वे हमारी याद का मातम मना रहे हैं,
हमारे समय की ख़ूबियों का ।

प्रिअम<ref>त्रोय का सम्राट</ref> और हेकुबा<ref>प्रिअम की पत्नी। त्रोय का महान योद्धा हेक्टर इन्हीं दोनों का पुत्र था ।</ref> फूट-फूट कर रो रहे हैं
हमारे लिए ।

[1905]
 
अँग्रेज़ी से अनुवाद : सुरेश सलिल

शब्दार्थ
<references/>