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थके प्रणय के गीत / सच्चिदानंद प्रेमी

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लूट गयी कौड़ी कीमत में,
                    मानव मन की प्रीत!
                     थके प्रणय के गीत!
नंगे पन का नृत्य अनोखा-
    क्या मथुरा क्या काशी,
रति-पति-क्रीड़ा धरम कोट में
          रचा रहे सन्यासी;
होली ईद दिवाली ऐसे-
पर्व हुए भय-भीत!
कुल मर्यादा गयी रसातल-
     तरी बही मनमानी,
तामस-तप से तमस कुंड को
      धधकाए वो ज्ञानी ;
कहाँ कौन किसको समझाए-
  सभी हुए विपरीत!
घर-परिजन सब रिश्ते-नाते
           दग्ध दाघ की धार,
तनवंगी हो गए गाँव के-
         धर्म नीति औ प्यार ;
राजनीति की राहें समतल-
क्या दुश्मन क्या मीत!
जागो युवा मातु-भूमि के
           क्या सपने में खोए,
चौर द्वार से घुसकर कोई
           अपनी मूँछ न धोए ;
खुशियाँ गाँव नगर में छाए-
                      गूंजे मन संगीत!
लूट न जाए कौड़ी में ही
                     मानव मन की प्रीत!
                       थके प्रणय के गीत!