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थामते थे तुम प्रिये जब / श्वेता राय

श्वेत होती मालती थी, चाँदनी बरसात में।
थामते थे तुम प्रिये जब, हाथ आधी रात में॥

नींद में खोया जहां था कामना पर थी जगी।
अधमुँदे से नैन में प्रिय प्रीत अपनी थी पगी।
ताल ले कर श्वास से फिर बढ़ रही थी धड़कने,
चाह में पागल हृदय को भा रही थी ये ठगी।
मधु छुअन से कौंधती थी दामिनी प्रिय गात में।
थामते थे तुम प्रिये जब हाथ आधी रात में॥

मिट रही थीँ दूरियाँ सब, आ रहे थे पास हम।
आँजुरी में भर रहे थे साथ का विश्वास हम।
चाँद देता था गवाही तारिकाएं लिपि बनी,
अश्रु से मन भूमि पर प्रिय सींचते थे आस हम।
रैन जगती भोर तक फिर, भाव भींगे बात में।
थामते थे तुम प्रिये जब, हाथ आधी रात में।

छू अधर को तुम अधर से झांकते थे नैन में।
बोलते थे प्रियतमा तुम घोल कर मधु बैन में।
पूर्ण फिर दोनों हुये थे, प्रीत के अधिकार से
देह का अवलम्ब लेजब चैन पाये रैन में।
छा गये थे रंग प्यारे तरु लता हर पात में।
थामते थे तुम प्रिये जब हाथ आधी रात में।

खो गई सम्वेदना अब खो गये अहसास क्यों।
प्यार में भीगे हुये पल कर रहे परिहास क्यों।
यत्न सारे बह गये हैं क्यों समय की धार में,
दूरियाँ आ छीनती हैं विगत पल के हास क्यों।
उलझती थी कब सहजता प्रिय समय के घात में।
थामते थे तुम प्रिये जब हाथ आधी रात में।