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थारा माथा की बिंदी वो रनुबाई अजब बनी / निमाड़ी

   ♦   रचनाकार: अज्ञात

थारा माथा की बिंदी वो रनुबाई अजब बनी।।
थारा टीका खS लागी जगाजोत वो
गढ़ छपेल रनुबाई अजब बनी।
थारा कान खS झुमका रनुबाई अजब बणया ।
थारी लटकन खs लगी जगाजोत वो।।
गढ़ छपेल रनुबाई अजब बनी।।
थारा हाथ का कंगण अजब बन्या,
थारी अंगूठी खs लगी जगाजोत वो
गढ़ छपेल रनुबाई अजब बनी।।
थारी कम्मर को कदरो रनुबाई अजब बन्यो
थारा गुच्छा खs लागी जगाजोत वो
गढ़ छपेल रनुबाई अजब बनी।
थारा अंग की साड़ी रनुबाई अजब बनी
थारा पल्लव खs लगी जगाजोत वो
गढ़ छपेल रनुबाई अजब बनी
थारा पांय की नेऊर रनुबाई अजब बन्या
थारा रमझोल खs लगी जगाजोत वो
गढ़ छपेल रनुबाई अजब बनी।

हे रनुबाई ! तुम्हारे माथे कि बिंदी, शीश का टीका, कान के लटकन बहुत ही सुन्दर लग रहे है। तुम्हारे कान के कंगन, अंगूठी, कमरबंद, गुच्छे की घड़त न्यारी है। तुम्हारे झुमके अंग की साडी और उसके पल्लव की शोभा न्यारी है।