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थारै पछै (2) / वासु आचार्य

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आजकाळै-
म्हैं-घणै उछाव
अर उमंग सूं
आंख्यां फाड़-फाड़
उडीकूं रात

रात चावै-कैड़ी-ई हुवो
रात-रात हुवै

आजकाळै-इण सूं
कीं फरक नीं पड़ै
क बा काळी-कळूटी
अंधारी अमावसी हुवै
या पूनम री धतूर
चांदणी री
छटा बिखैरती

रात...चावै कैड़ी‘ई हुवौ
रात हुवै
आजकाळै-इण सूं भी
कीं फरक नीं पड़ै
क नींद धाप‘र आवै
या हड़बड़ीज्यौड़ी-आधी अधबळी


नींद-सुख री नींद
नीं सई
मूरछा ज्यूं ई सई
सबसू दूर-
घणौ दूर तो हुय‘ई जाऊ

अर बळबळतै-
जी री आंख
सुपनै री आंख
जौवती रै
अमूरत मांय कोई मूरत
कोई सूरत

कित्तौ गळगळौ है
मर रो उछाव
अर हियै री उमंग

जकौ उडीकै
आंख्यां फाड़ फाड़ बा रात

थारै पछै
थारै पछै