भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

थारै हुवण री / सांवर दइया

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

पगां हेठै धरती है
माथै ऊपर आभो
च्यारूंमेर खुली हवा
हवा में
थारै हुवण री सोरम

कठैई आवूं-जावूं
म्हारै सागै थे
अबै म्हनै डर किण बात रो !