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था अजल का मैं अजल का हो गया / शाद अज़ीमाबादी

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था अजल का मैं अजल का हो गया
बीच में चौंका तो था फिर सो गया

लुत्फ़ तो ये है कि आप अपना नहीं
जो हुआ तेरा वो तेरा हो गया

काटे खाती है मुझे वीरानगी
कौन इस मदफ़न पे आ कर रो गया

बहर-ए-हस्ती के उमुक़ को क्या बताऊँ
डूब कर मैं ‘शाद’ इस में खो गया