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थैलियाँ समर्पित की सेवा के हित हजार / हरिवंशराय बच्चन

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थैलियाँ समर्पित कीं सेवा के हित हजार,

श्रद्धांजलियाँ अर्पित कीं तुमको लाख बार,

गो तुम्‍हें न थी इनकी कोई आवश्‍यक्‍ता,

पुष्‍पांजलियाँ भी तुम्‍हें देश ने दीं अपार,

अब, हाय, तिलांजलि

देने की आई बारी।


तुम तील थे लेकिन झुकाते सदा ताड़,

तुम तिल थे लेकिन लिए ओट में थे पहाड़,

शंकर-पिनाक-सी रही तुम्‍हारी जमी धाक,

तुम हटी न ति‍ल भर, गई दानवी शक्ति हार;

तिल एक तुम्‍हारे जीवन की

व्‍याख्‍या सारी।


तिल-तिल कर तुमने देश कीच से उठा लिया,

तिल-तिल निज को उसकी चिंता में गला दिया,

तुमने स्‍वदेश का तिलक किया आज़ादी से,

जीवन में क्‍या, मरकर भी ऐसा तिलस्‍म किया;

क़ातिल ने महिमा

और तुम्‍हारी विस्‍तारी।


तुम कटे मगर तिल भर भी सत्‍ता नहीं कटी,

तुम लुप्‍त हुए, तिल मात्र महत्‍ता नहीं घटी,

तुम देह नहीं थे, तुम थे भारत की आत्‍मा,

ज़ाहिर बातिल थी, बातिल ज़ाहिर बन प्रकटी,

तिल की अंजलि को आज

मिले तुम अधिकारी।