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थोड़े पिता थोड़ी-थोड़ी माँ / सवाईसिंह शेखावत

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मैं जब भी कराहता हूँ मुझे माँ की याद आती है
मेरी यादों में पैबस्त है पिता का रुआबदार चेहरा
खुशी के पलों में मैं अक्सर माँ को बिसराए रहा
दुनिया को बरतते हुए पिता जब-तब याद आए
वैसे हर पिता में छिपी होती है थोड़ी-थोड़ी माँ भी
जो प्रकट होती है केवल जीवन के आर्द्र क्षणों में
ठीक वैसे ही माँ भी​​ भीतर से मजबूत पिता होती है
लेकिन माँ में पिता का आधिपत्य होते ही
माँ अक्सर सिकन्दर हो जाती है फिर वह
घर-परिवार को सल्तनत की तरह चलाती है
जबकि पिता में माँ का होना उन्हें मानवीय बनाता है
ऐसे में ऊपर वाले से बस इतनी-सी दुआ है
बचे रहें माँ में थोड़े पिता, पिता में बची रहे थोड़ी-थोड़ी माँ।