भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

थोड़े पिता थोड़ी-थोड़ी माँ / सवाईसिंह शेखावत

Kavita Kosh से
Kumar mukul (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 11:07, 17 अक्टूबर 2018 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=सवाईसिंह शेखावत |संग्रह= }} {{KKCatK avita}} <p...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

{{KKCatK avita}}


मैं जब भी कराहता हूँ मुझे माँ की याद आती है
मेरी यादों में पैबस्त है पिता का रुआबदार चेहरा
खुशी के पलों में मैं अक्सर माँ को बिसराए रहा
दुनिया को बरतते हुए पिता जब-तब याद आए
वैसे हर पिता में छिपी होती है थोड़ी-थोड़ी माँ भी
जो प्रकट होती है केवल जीवन के आर्द्र क्षणों में
ठीक वैसे ही माँ भी​​ भीतर से मजबूत पिता होती है
लेकिन माँ में पिता का आधिपत्य होते ही
माँ अक्सर सिकन्दर हो जाती है फिर वह
घर-परिवार को सल्तनत की तरह चलाती है
जबकि पिता में माँ का होना उन्हें मानवीय बनाता है
ऐसे में ऊपर वाले से बस इतनी-सी दुआ है
बचे रहें माँ में थोड़े पिता, पिता में बची रहे थोड़ी-थोड़ी माँ।