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दंशित एहसास / उर्मिल सत्यभूषण

शंकाओं के ज़हरीले वातावरण में
भयाक्रांत मन, घुटने लगता है
सामंतवादी संस्कारों के
दृष्टिदंश बहुत अपमान दे जाते हैं मित्र!
गांधी के बंदरों की तरह
आंख, कान, मुंह
बंद भले ही कर लिये जायें
हवा की सरगोशियां
खुशबू की तरह ही
बदबू का एहसास करा ही जाती है।
कितना मुश्किल है जीना
दंशित एहसासों पर
खारे आंसुओं को पीना
पिघले हुये सीसे को
कानों में सहना
नज़रों के दंश
आंखों पर झेलना
जलते हुये तीर
सांसों पर रोकना
और चुप रहना।