Last modified on 14 जून 2015, at 00:21

दगा / तेनजिन त्सुंदे

अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 00:21, 14 जून 2015 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=तेनजिन त्सुंदे |अनुवादक=अशोक पां...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

हमारे घर,
हमारे गाँव, हमारे देश को बचाने की कोशिश में
मेरे पिता ने अपनी जान गँवाई,
मैं भी लडऩा चहता था,
लेकिन हम लोग बौद्ध हैं,
शान्तिप्रिय और अहिंसक,
सो मैं क्षमा करता हूँ अपने शत्रु को,
लेकिन कभी-कभी मुझे लगता है
मैंने दगा दिया अपने पिता को ।