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दम्भ / दीनदयाल गिरि

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देखो कपटी दम्भ को, कैसो बाको काम ।
बेचनिहारो बेर को देत दिखाय बदाम ।।

देत दिखाय बदाम लिए मखमल की थैली ।
बाहिर बनी विचित्र वस्तु अन्तर अति मैली ।।

वरनै दीनदयाल कौमन करि सकै परेखो ।
ऊँची बैठि दुकान ठगै सिगरो जग देखो ।। ४७।।