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दयारे-इश्क़ में अपना मुक़ाम पैदा कर / इक़बाल

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अपने पुत्र के लिए लंदन से भेजा गया उनका पहला ख़त

दयारे-इश्क़ में अपना मुक़ाम पैदा कर
नया ज़माना नए सुब्ह-ओ-शाम पैदा कर

ख़ुदा अगर दिले-फ़ितरत-शनास <ref>प्रकृति को पहचानने वाला दिल</ref> दे तुझको
सुकूते-लाल-ओ-गुल<ref>फूलों की चुप्पी</ref> से कलाम पैदा कर

उठा न शीशा-गराने-फ़िरंग के अहसाँ
सिफ़ाले-हिन्द<ref>हिन्दोस्तान की मिट्टी</ref> से मीना-ओ-जाम पैदा कर

मैं शाख़े-ताक़<ref>अंगूर की टहनी</ref> हूँ मेरी ग़ज़ल है मेरा समर<ref>फल</ref>
मिरे समर से मय-ए- लालाफ़ाम<ref>फूलों के रंग जैसी(लाल) मदिरा</ref> पैदा कर

मिरा तरीक़<ref>तरीक़ा</ref> अमीरी नहीं फ़क़ीरी है
ख़ुदी न बेच ग़रीबी में नाम पैदा कर
 

शब्दार्थ
<references/>