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दरवाजे बंद हुए / पंख बिखरे रेत पर / कुमार रवींद्र

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बाहर जो खुलते थे दरवाजे
बंद हुए
 
रिश्तों ने
मिल-जुलकर
तोड़ दिये घर सारे
पुरखों की चौखट पर
बैठे हैं बँटवारे
 
मीठे जो
बजते थे पहुनाई के बाजे
बंद हुए
 
खोल लिये लोगों ने
पिछवाड़े के रस्ते
नकली दीवारों से
घेर लिये चौरस्ते
 
झोंके
फगुनाहट के आते थे जो ताज़े
बंद हुए