भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

दरिया वहीं बहता रहा मेरे तुम्हारे बाद / रवि सिन्हा

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

दरिया वहीं बहता रहा मेरे तुम्हारे बाद
उस पेड़ का साया रहा मेरे तुम्हारे बाद

बादल ख़बर लाया किये परदेस से चलकर
सूरज सफ़र करता रहा मेरे तुम्हारे बाद

दुनिया नई बनती रही ख़ल्क़ो-ख़ला<ref>सृष्टि और शून्य (creation and nothingness)</ref> के बीच
जारी वही क़िस्सा रहा मेरे तुम्हारे बाद

वो नौजवाँ आशिक़ बने मुख़्लिस मिज़ाज<ref>निर्मल स्वभाव (pure nature)</ref> से
कुछ तो असर अच्छा रहा मेरे तुम्हारे बाद

शायर ग़ज़ल छेड़े रहा उस रौज़ने-ज़िन्दाँ<ref>कारागार की खिड़की (prison window)</ref>
दरवेश भी गाता रहा मेरे तुम्हारे बाद

दारो-रसन<ref>सूली और फन्दा (gallows)</ref> तक राह भर हँसता चला पीछे
पर नाम ले रोता रहा मेरे तुम्हारे बाद

वो एक नाकामी ज़माने का सुकून थी
उस एक का चर्चा रहा मेरे तुम्हारे बाद

लहरें पलट आईं जो मुस्तक़बिल<ref>भविष्य (future)</ref> के छोर से
माज़ी नया होता रहा मेरे तुम्हारे बाद

तारीख़ पीछे थी नयी तख़्लीक़<ref>सृजन (creation)</ref> थी आगे
जिद्दोजहद चलता रहा मेरे तुम्हारे बाद

शब्दार्थ
<references/>