भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

दर्द-शनास दिल नहीं जलवा-तलब नज़र नहीं / 'शमीम' करहानी

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

दर्द-शनास दिल नहीं जलवा-तलब नज़र नहीं
हादसा कितना सख़्त है उन को अभी ख़बर नहीं

और बढ़ेगा दर्द-ए-दिल रात जो भीग जाएगी
देख न वक़्त की तरफ़ वक़्त भी चारागर नहीं

किस को ख़बर कि हम से कब आप निगाह फेर लें
नशा तो धूप छाँव है बादा भी मोतबर नहीं

हम तो ख़ज़ाँ की धूप में ख़ून-ए-जिगर छिड़क चले
मौसम-ए-गुल की चांदनी किस को मिले ख़बर नहीं

दिल के तअल्लुक़ात से कौन सा दिल को चैन है
आओ किसी से तोड़ लें रिश्ता-ए-दिल मगर नहीं

इश्क़ पे कैसा दुख पड़ा हुस्न पे क्या गुज़र गई
आज गली उदास है आज वो बाम पर नहीं

दिल से ‘शमीम’ गुफ़्तगू देखिये कब तलक चले
रात भी मुख़्तसर नहीं बात भी मुख़्तसर नहीं