दर्द का फिर गीत गाया झील ने
हाँ मुझे ही गुनगुनाया झील ने
आज की शब गुफ़्तगू के वास्ते
चाँद को मिलने बुलाया झील ने
कोहसारों के सँवरने के लिए
ख़ुद को आईना बनाया झील ने
अश्क हैं अनमोल मत ज़ाया करो
ये सबक मुझको सिखाया झील ने
मैं गया तो ख़ैरमक़दम के लिये
रेत का दामन बिछाया झील ने