भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

दर्द के भोज में जब हमने सजाए आँसू / ज्ञान प्रकाश विवेक

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

दर्द के भोज में जब हमने सजाए आँसू
किसी व्यंजन की तरह भीड़ ने खाए आँसू

इंतहा दर्द की उस शख़्स से पूछो यारो
जब वो रोया तो बहुत और न आए आँसू

स्वागत इससे बड़ा और करता कैसे
जिसने फूलों के एवज़ अपने सजाए आँसू

क़हक़हे बैठ गए भक्तजनों की मानिंद
जोगियों की तरह जब आँख में आए आँसू

पूछता फिरता रहा भोर का तारा सबसे
किसने पृथ्वी की हथेली पे सजाए आँसू