दर्द खोटा क्यों लगा, सोना खरा कैसे लगा।
क्या कसौटी थी हमारे सामने फिर से लगा।
उम्र भर ग़ज़लें कहीं, लेकर भुनाने को गये
छापनेवाले लगे कहने कि तू पैसे लगा।
मौत जैसी नींद की मारी ज़मीनों को जगा
धूप साये में न जिनके पेड़ कुछ ऐसे लगा।
दर्द खोटा क्यों लगा, सोना खरा कैसे लगा।
क्या कसौटी थी हमारे सामने फिर से लगा।
उम्र भर ग़ज़लें कहीं, लेकर भुनाने को गये
छापनेवाले लगे कहने कि तू पैसे लगा।
मौत जैसी नींद की मारी ज़मीनों को जगा
धूप साये में न जिनके पेड़ कुछ ऐसे लगा।