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दर्द जो तेरा था मेरा हो गया है / सुरेन्द्र सुकुमार
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दर्द जो तेरा था मेरा हो गया है।
लग रहा है अब सवेरा हो गया है।
भीड़ उनकी लग रही चौराहे पे,
घर नहीं जिनका कि डेरा हो गया है।
कुछ भी हो जाए कोई न बोलता,
शहर मुर्दों का बसेरा हो गया है।
जल रहा है शहर गीली वस्तु-सा,
उस धुएँ से ही अन्धेरा हो गया है।
गुस्से में भर के ये सलाखें तोड़ दो,
सीखचों का तंग घेरा हो गया है।