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दर्द / कल्पना मिश्रा

दर्द नहीं होता बुरा हर बार
कई दफा सिखा जाता है,
वो जो हम बिना तड़पे नही समझ पाते
कई बार जगा जाता है ह्रदय के
उन संवेदना शून्य हो चुके भाग को
जो दूसरों की पीड़ा में हँसता था,
कई मर्तबा दर्द दे देता है कुछ अधिक
दृढ़ता कर्तव्यनिष्ठा के लिए
कई संकल्प जो भूल जाते हैं,
याद दिला जाता है दर्द
पीड़ा में कुछ तड़पन है, कुछ सृजन है
कुछ अश्रु है, कुछ जीवन है,
पर अंततः पीड़ा प्रशस्त करती है मार्ग मुक्ति का
निकलता है रास्ता आत्म जागृति का
दर्द खुद कई बार बन जाता है नस्तर
और बहा देता है मवाद अहं और विकृति का!!