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दर्पण चेहरों ने घेरा है / उर्मिल सत्यभूषण

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दर्पण चेहरों ने घेरा है
इक तेरा है, इक मेरा है

आता है कोई जाता है
यह जोगी वाला फेरा है

कल हंगामों की बस्ती थी
अब खामोशी का डेरा है

हम दीवानों की दुनिया को
शंकाओं ने आ घेरा है

सूरज निकलेगा तब चलना
उर्मिल कुछ दूर सवेरा है।