दश्त मेरी ही दुहाई देगा
फिर मुझे आबला-पाई देगा
रौशनी रूह तलक आ पहुँची
अब अंधेरे में दिखाई देगा
जर्द पत्तों का धड़कता हुआ दिल
ख़ामुशी में भी सुनाई देगा
तोड़ कर देख तू आईना-ए-दिल
शहर का शहर दिखाई देगा
कश्फ़ ओ आगाही के आईने में
अपना बहरूप दिखाई देगा