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दस्तूर / अवधेश कुमार जायसवाल

मालिक मचानी पर
कटनी हलकान
हसिया के खर-खर
रीझै छै कान।
पतिया बिछाय छै
ताकै छै घूरी
गीनै छै अटिया
बैठलोॅ मचान।
मोठका सब मोटाका केॅ
छोटका कटनिया केॅ।
तेरह ‘‘में’’ एक के
दुनिया दसतूर
तेरह ‘‘पर’’ एक कहै
ओकरोॅ दसतूर।
बोलै छै कुछ्छु तेॅ
गांठै छै रोब
हमरा देखाबै छै
लाठी केॅ खौफ।
झुकी-झुकी ठौकै छी
ओकरा सलाम
मन में गरियाबै छी
मरबे बैमान।