भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"दस दोहे (21-30) / चंद्रसिंह बिरकाली" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
छो ("दस दोहे (21-30) / चंद्रसिंह बिरकाली" सुरक्षित कर दिया ([edit=sysop] (indefinite) [move=sysop] (indefinite)))
 
(इसी सदस्य द्वारा किये गये बीच के 2 अवतरण नहीं दर्शाए गए)
पंक्ति 7: पंक्ति 7:
 
[[Category: दोहा]]
 
[[Category: दोहा]]
 
<poem>
 
<poem>
 +
सिर पर घुमे सांकडी, कर-कर नवलो बेस ।
 +
सौत सिखाई वादळी इण में लाव ना लैस ।।21।।
  
 +
नए-नए वेष धर तू समीप ही सिर पर घूम रही है । बादली, तुम्हें सौत ने सिखा कर भेजा है, इसमें जरा भी संशय नही है ।
  
सिर पर घुमे सांकडी, कर-कर नवलो बेस।
+
छोड़ मरोड़, छिपा मती धण रो देख हवाल ।
सौत सिखाई वादळी इण में लाव ना लैस।। 21।।
+
बता बता ऐ बादली साजन रा सै हाल ।।22।।
  
नये-नये वेष धर तू समीप ही सिर पर घूम रही है। बादली, तुम्हें सौत ने सिखा कर भेजा है, इसमें जरा भी संशय नही है।
+
यह अकड़ छोड़ दे, छिपा मत, देख धन्या का बुरा हाल हो रहा है । बादली, साजन के सब समाचार शीघ्र बता दे ।
  
छोड़ मरोड़, छिपा मती धण रो देख हवाल।
+
सज-धज आवै सामनै चालै मधरी चाल ।
बता बता ऐ बादली साजन रा सै हाल।। 22।।
+
सैण-सनैसो बादळी सुणा-सुणा तत्काल् ।।23।।
  
यह अकड़ छोड़ दे, छिपा मत, देख धन्या का बुरा हाल हो रहा है। बादली, साजन के सब समाचार षिघ्र बता दे।
+
तू सज-धज कर सामने आती और धीमी-धीमी चाल चलती है । बादली, साजन का संदेशा तत्काल् सुना दे ।
  
सज-धज आवै सामनै चालै मधरी चाल।
+
धौळी रूई फैल सी, घुळ-घुळ भूरी होय ।
सैण-सनैसो बादळी सुणा-सुणा तत्काल्।। 23।।
+
बरस घटा बण, बादळी मुरधर कानी जोय ।।24।।
  
तु सज-धज कर सामने आती और धीमी-धीमी चाल चलती है। बादली, साजन का संदेशा तत्काल् सुना दे।
+
सफ़ेद रूई के फाये-सी तू घुल-घुल कर भूरी हो जाती है । बादली, मरूधरा की तरफ देखकर घटा बन बरस पड़ो ।
  
धौळी रूई फैल सी, घुळ-घुळ भूरी होय।
+
जळहर ऊंचा आविया बोल रया जल-काग ।
बरस घटा बण, बादळी मुरधर कानी जोय।। 24।।
+
देण बधाई मेह री रया कनैया भाग ।।25।।
  
सफेद रूई के फाऐ सी तु घुल-घुल कर भूरी हो जाती है। बादली, मरूधरा की तरफ देखकर घटा बन बरस पड़ो।
+
जलधर ऊँचे आ गए हैं, जल-काग बोल रहे हैं और मेह की बधाई देने के लिये कन्हैया पक्षी भी दौड़ रहे हैं ।
  
जळहर ऊंचा आविया बोल रया जल-काग।
+
आयी नेड़ी मिलण ने तीतरपंखी रेख ।
देण बधाई मेह री रया कनैया भाग ।। 25 ।।
+
हरखी सारी मुरधरा चांद-जलैरी देख ।।26।।
  
जलधर ऊंचे गये है, जल-काग बोल रहे है और मेह की बधाई देने के लिये कन्हैया पक्षी भी दौड़ रहे है।
+
तीतरपंखी रेखा के रूप में मिलने के लिये तू समीप गई है और चाँद-जलहरी को देख कर सारी मरूधरा हर्षित हो उठी है
  
आयी नेड़ी मिलण ने तीतरपंखी रेख।
+
चरचर करती चिड़कल्यां करै रेत असनान ।
हरखी सारी मुरधरा चांद-जलैरी देख।। 26।।
+
तंबू सो अब ताणियों बादळयां असमान ।।27।।
  
तीतरपंखी रेखा के रूप में मिलने के लिये तु समीप आ गई है और चंाद-जलहरी को देख कर सारी मरूधरा हर्षित हो उठी है।
+
चहचहाती चिड़िया धूलि-स्नान कर रही है । अब बादलियों ने आसमान में तंबू-सा तान लिया है ।
  
चरचर करती चिड़कल्यां करै रेत असनान।
+
दूर खितिज पर बादळयां च्यारूं दिस में गाज ।
तंबू सो अब ताणियों बादळयां असमान।। 27।।
+
जाणै कम्मर बांधली आभै वरसण आज ।।28।।
  
चहचहाती चिड़िया धूलिस्नान कर रही है। अब बादलियों ने आसमान में तंबु सा तान लिया है।
+
दूर क्षितिज पर बादलियाँ है और चारों दिशाएँ गरज रही है, मानों आज आकाश ने बरसने के लिये कमर कस ली है ।
 
+
दूर खितिज पर बादळयां च्यारूं दिस में गाज।
+
जाणै कम्मर बांधली आभै वरसण आज ।। 28 ।।
+
 
+
दूर क्षितिज पर बादलियां है और चारों दिशाएं गरज रही है, मानों आज आकाश ने बरसने के लिये कमर कस ली है।
+
  
 
आभ अमूझी बादळी घरां अमूझी नार ।
 
आभ अमूझी बादळी घरां अमूझी नार ।
धरां अमूझ्या धोरिया परदेसां भरतार ।। 29 ।।
+
धरां अमूझ्या धोरिया परदेसां भरतार ।।29।।
 
+
आकाश में बादली अमूझ रही है, घरों में स्त्रियां अमूझ रही है। धरा पर टीले अमूझ रहे है और परदेशों में पति अमूझ रहे है।
+
  
गांव-गांव में बादळी सुणा सनेसो गाज।
+
आकाश में बादली अमूझ रही है, घरों में स्त्रियाँ अमूझ रही है। धरा पर टीले अमूझ रहे है और परदेशों में पति अमूझ रहे है ।
इंदर वूठण आवियो तूठण मूरधरआज।। 30।।
+
  
बादली, गांव-गांव में गरज कर यह सदेंशा सुनादे कि आज मरूधरा को प्रसन्न करने के लिये इन्द्र बरसने आये है।
+
गांव-गांव में बादळी सुणा सनेसो गाज ।
 +
इंदर वूठण आवियो तूठण मूरधरआज ।।30।।
  
 +
बादली, गाँव-गाँव में गरज कर यह सदेंशा सुना दे कि आज मरूधरा को प्रसन्न करने के लिये इन्द्र बरसने आए हैं ।
 
</Poem>
 
</Poem>

22:03, 1 दिसम्बर 2010 के समय का अवतरण

सिर पर घुमे सांकडी, कर-कर नवलो बेस ।
सौत सिखाई वादळी इण में लाव ना लैस ।।21।।

नए-नए वेष धर तू समीप ही सिर पर घूम रही है । बादली, तुम्हें सौत ने सिखा कर भेजा है, इसमें जरा भी संशय नही है ।

छोड़ मरोड़, छिपा मती धण रो देख हवाल ।
बता बता ऐ बादली साजन रा सै हाल ।।22।।

यह अकड़ छोड़ दे, छिपा मत, देख धन्या का बुरा हाल हो रहा है । बादली, साजन के सब समाचार शीघ्र बता दे ।

सज-धज आवै सामनै चालै मधरी चाल ।
सैण-सनैसो बादळी सुणा-सुणा तत्काल् ।।23।।

तू सज-धज कर सामने आती और धीमी-धीमी चाल चलती है । बादली, साजन का संदेशा तत्काल् सुना दे ।

धौळी रूई फैल सी, घुळ-घुळ भूरी होय ।
बरस घटा बण, बादळी मुरधर कानी जोय ।।24।।

सफ़ेद रूई के फाये-सी तू घुल-घुल कर भूरी हो जाती है । बादली, मरूधरा की तरफ देखकर घटा बन बरस पड़ो ।

जळहर ऊंचा आविया बोल रया जल-काग ।
देण बधाई मेह री रया कनैया भाग ।।25।।

जलधर ऊँचे आ गए हैं, जल-काग बोल रहे हैं और मेह की बधाई देने के लिये कन्हैया पक्षी भी दौड़ रहे हैं ।

आयी नेड़ी मिलण ने तीतरपंखी रेख ।
हरखी सारी मुरधरा चांद-जलैरी देख ।।26।।

तीतरपंखी रेखा के रूप में मिलने के लिये तू समीप आ गई है और चाँद-जलहरी को देख कर सारी मरूधरा हर्षित हो उठी है ।

चरचर करती चिड़कल्यां करै रेत असनान ।
तंबू सो अब ताणियों बादळयां असमान ।।27।।

चहचहाती चिड़िया धूलि-स्नान कर रही है । अब बादलियों ने आसमान में तंबू-सा तान लिया है ।

दूर खितिज पर बादळयां च्यारूं दिस में गाज ।
जाणै कम्मर बांधली आभै वरसण आज ।।28।।

दूर क्षितिज पर बादलियाँ है और चारों दिशाएँ गरज रही है, मानों आज आकाश ने बरसने के लिये कमर कस ली है ।

आभ अमूझी बादळी घरां अमूझी नार ।
धरां अमूझ्या धोरिया परदेसां भरतार ।।29।।

आकाश में बादली अमूझ रही है, घरों में स्त्रियाँ अमूझ रही है। धरा पर टीले अमूझ रहे है और परदेशों में पति अमूझ रहे है ।

गांव-गांव में बादळी सुणा सनेसो गाज ।
इंदर वूठण आवियो तूठण मूरधरआज ।।30।।

बादली, गाँव-गाँव में गरज कर यह सदेंशा सुना दे कि आज मरूधरा को प्रसन्न करने के लिये इन्द्र बरसने आए हैं ।