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दस दोहे 01-10 / चंद्रसिंह बिरकाली

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कोमळ कोमळ पांखड्यां कोमळ कोमळ पान
कोमळ कोमळ बेलड्यां राख्या लूआं ध्यान ।। 1।।

फूलों की नरम-नरम पंखुड़ियां, नवांकुरित नरम-नरम पत्ते और नन्हीं-नन्हीं मृदु लताओं को बचानें का प्रयत्न तो करना, लूओं !

सूरज किरणां चाव में फूटी कळी समूळ
लूआं दीसी सामनै लागी हिवड़ै सूळ।। 2।।

सूर्य-किरणों से गले मिलने की उत्कंठा में कलियां कभी से मुकुलित हो उठी थीं पर साथ ही लूओं का आगमन अनुभव कर उनके हृदय में तीव्र वेदना होने लगी।

आगै बध-बध बांटता दिखण पवन नै वास
जिण दिन लूआं भेटिया फूलां छूटी आस।। 3।।

होड बद-बद कर मलयानिल को सौरम लुटाने वाले वे ही कुसुम जिस दिन से उनका लूओं से साक्षात्कार हुआ है, अपने जीवन की आशा तक छोड़ चुके है।

कर ठाली पाल्या सबै फूलां पुरसी जेम।
झीणी मसती झूमती बहकी लूआं केम।। 4।।

फूलों की प्यालियों में परोसे हुए मकरन्द को पान करें तो, लूओं तुम्हें गुलाबी नशे में झुमना चाहिए था पर न जाने किस कारण तुम पागल की तरह प्रलाप करने लगी हो।

चैती सौरम चूस ली कळ्यां गई कमळाय।
फूलां बिछड़ी पांखड्यां लूआं बाजी आय।। 5।।

लूओं ने आती ही वासंती सौरम (सुगन्ध) को चूस लिया, कलियां कुम्हला गई, और फूलों से पंखुडियां बिलख-बिलख कर बिछड़ने लगी।

काची कूंपळ फूल फळ फूटी सा बणराय।
बाड़ी भरी बंसत री, लूटी लूआं आय ।। 6।।

कच्ची-कच्ची कोंपलें, फूल फल और वनस्पति, जो हाल ही में मुकुलित हुई थी, बंसत की उस हरी-भरी वाटिका को लूओं ने आते ही लूट लिया।

पोखी कळियां प्यार सूं भर भर आस अटूट।
बिलखै सारी बेलड्यां लूआं लीधी लूट।। 7।।

अनेक प्रकार की आशाएं लेकर वल्लरियों ने कलियों का बड़े प्यार से पोषण किया था। अब वे बिलख-बिलख कर रो रही है। लूओं ने कलियों का जला कर उनका र्स्वस्व लूट लिया है।


दिखण पवन री गोद में हींड्या हंस हंस काल।
बैरण लूआं बाळिया बेलां रा बै लाल ।। 8 ।।

मलयानिल की गोद में जो प्रसून कल आनन्दातरेक में झूल रहे थे, लताओं के उन प्यारे प्रसूनों को शत्रु स्वरूपा लूओं ने जला डाला।

नान्हां-नान्हां फूलड़ा मोटा मोटा फूल।
काची कळियां रोसियां कीधी आ के भूल ।। 9।।

नन्हें-नन्हें कुसुम, पूर्ण विकसित फूल और कच्ची-कच्ची कलियों को झूलसा कर लूओं ! तुमने यह क्या भूल की !

झट झट आंख्यां देखतां झड़ झड़ पड़िया फूल।
झुर-झुर वेलां सूकियां भुर भुर गई समुळ।। 10।।

आंखो के सामने प्रतिक्षण झड़ते हुए प्यारे प्रसूनों को देखकर असह्मय वेदना से वल्लरियां सूखने लगीं और धीरे-धीरे जड़ सहित अपने को नष्ट कर डाला।