Changes

|रचनाकार=तारा सिंह
}}
{{KKCatKavita}}<poem>:हे माँ देवी कैलासिनी:जगत जननी कल्याणी:तुम हो सारे जगत की माता
:मैं निज बेटे की हतभागिन जननी
:::माँ तुमको मालूम है, जिसके लिए मैं:::तुमसे करूणा की भीख मांगने आई हूँ:::वह कोई अपराधी नहीं, मेरा अंश है
:::मेरे जीने का अभिप्राय है,बुढ़ापे की लाठी है
:::झुकी और कमजोर अस्थियों की शक्ति है
:मेरे सुत के तन से मधुर भाव छलकता है:अमृत से भरा वह प्याला है:जिसे चूम – चूम कर मैं जीती हूँ:इसलिए मेरी प्रार्थना, तुम स्वीकार करो:और मेरे सुत को मंगलमय वरदान दो
:::मेरा बेटा स्वभाव का बड़ा ही मीठा है:::दुख के करुवेपन सह नहीं सकता है
:::मेरे आँगन का चाँद है, अँधेरे का उजाला है
:::सुबह की उषा किरण की तरह सुखदायी है
:::ओस कण की तरह प्यारा और मनमोहक है
:तुम्हारे सिवा , इस लोक में मेरा कौन है माता:तुम भलीभांती जानती हो, इस दुनिया में:केवल माँ बन जाने से ममत्व पूरा नहीं हो जाता
:इसलिए विनती है, मेरे सुत का मंगलमय कर दो जीवन
:बदले में तुम ले लो मेरा, कोई भी स्वर्णिम क्षण
:::तुम प्रकाश की महासिंधु हो:::थोडी रोशनी मेरे सुत को भी दे दो:::तुम्हारे मन की ये कैसी दुबिधा:::कि देवी होकर भी मेरे पुत्र का
:::मधुमय जीवन लौटाने से हिचक रही हो
:तुम मेरी तरह असहाय नारी नहीं हो:तुम महाशक्ति की देवी हो :फिर क्यों नहीं, मेरे सुत के दुख – दर्ददुख–दर्द:के गरल को अमृत समझ पी लेती हो:और अपना प्रेम- पीयूष बरसाकर:उसके तन-मन को शीतल कर देती हो</poem>
Delete, Mover, Protect, Reupload, Uploader, प्रबंधक
35,100
edits