Last modified on 29 नवम्बर 2013, at 09:30

दहेज / विमल राजस्थानी

आशिष पुरोहित (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 09:30, 29 नवम्बर 2013 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=विमल राजस्थानी |संग्रह=इन्द्रधन...' के साथ नया पन्ना बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

गरीब बाप, बेटियाँ जवान हो गयीं
नींद नहीं आँखों में
थकन भरी पाँखों मे
बेटियाँ हैं ऐसी कि
मिले नहीं लाखों में
सारी रात गिनता है तारे
ठठरी भर देह रही-
चिन्ता के मारे
दर-दर है भटक रहा
अधर बीच अटक रहा
पत्थर ही पत्थर हैं
व्यर्थ शीश पटक रहा
भटका है कई द्वार
‘माँगों’ की मिली मार
कैसे बचेगी लाज
अब गिरी तब गिरी गाज
असमय ही कमर झुकी
पड़ा हुआ! औंधे मुँह, बेबस निढ़ाल
हाय रे हाय! यह दहेज या कि काल
झुकी कमर जैसे कमान हो गयी।