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दाख़िल-ओ- खारिज़ / शीन काफ़ निज़ाम

जाने कितने जन्मों के जज़ीरे
अभी हमारे आगे हैं
क्या यूँ ही अंधे अक़ीदे हर बार
इस्तक़बाल को सामने आयेंगे
हमें भी शायद अब तक
सुकून का इंतज़ार करना पड़ेगा
जब तक
हमारे अन्दर का कुहरा
बाहर के सन्नाटे में
घुल -मिल नहीं जाता