भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

दादा साहेब के घर पोता भयेल हे / मगही

Kavita Kosh से
Sharda suman (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 22:36, 11 जून 2015 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKLokRachna |भाषा=मगही |रचनाकार=अज्ञात |संग्रह= }} {{KKCatSohar}}...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

मगही लोकगीत   ♦   रचनाकार: अज्ञात

बधैया

दादा साहेब के घर पोता भयेल हे।
पोता निछाउर<ref>न्योछावर। नेग</ref> कछु देवऽ<ref>दोगे</ref> कि न?।
हमसे असीस<ref>आशीर्वाद</ref> कछु लेबऽ<ref>लोगे</ref> कि न?॥1॥
देबो<ref>दूँगा</ref> मैं देबो पोती अन धन सोनवाँ।
हमरा ही<ref>हमारे यहाँ</ref> नाचबऽ आउ<ref>और</ref> गयबऽ कि न?॥2॥
गयबो मैं गयबो दादा, दिनमा से रतिआ<ref>दिन से रात तक</ref>।
अपन खजाना लुटयबऽ कि न?॥3॥
जुग जुग जिओ दादा तोहर होरिलवा<ref>नवजात शिशु</ref>।
हमर ससुर घर पेठयबऽ कि न?॥4॥

शब्दार्थ
<references/>