भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
दाम की दाल छदाम के चाउर घी अँगुरीन लैँ दूरि दिखायो / अज्ञात कवि (रीतिकाल)
Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 09:55, 30 जून 2009 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=अज्ञात कवि (रीतिकाल) }} <poem> दाम की दाल छदाम के चाउर ...)
दाम की दाल छदाम के चाउर घी अँगुरीन लैँ दूरि दिखायो ।
दोनो सो नोन धयो कछु आनि सबै तरकारी को नाम गनायो ।
विप्र बुलाय पुरोहित को अपनी बिपता सब भाँति सुनायो ।
साहजी आज सराध कियो सो भली बिधि सोँ पुरखा फुसलायो ।
रीतिकाल के किन्हीं अज्ञात कवि का यह दुर्लभ छन्द श्री राजुल महरोत्रा के संग्रह से उपलब्ध हुआ है।