Last modified on 1 नवम्बर 2009, at 23:17

दाम की दाल छदाम के चाउर घी अँगुरीन लैँ दूरि दिखायो / अज्ञात कवि (रीतिकाल)

दाम की दाल छदाम के चाउर घी अँगुरीन लैँ दूरि दिखायो ।
दोनो सो नोन धयो कछु आनि सबै तरकारी को नाम गनायो ।
विप्र बुलाय पुरोहित को अपनी बिपता सब भाँति सुनायो ।
साहजी आज सराध कियो सो भली बिधि सोँ पुरखा फुसलायो ।


रीतिकाल के किन्हीं अज्ञात कवि का यह दुर्लभ छन्द श्री राजुल महरोत्रा के संग्रह से उपलब्ध हुआ है।