भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

दिखणादे धोरे माथे / राजेन्द्र देथा

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

ज़द गाम में बरसे
आषाढ़ रो पैलो मेह
ठीक उण बखत इज़ याद आवे
म्हैने म्हारो बाळपणो,
ठीक उणीज बखत
म्हैें चीतारूं दिखणादे धोरै नै
जकौ म्हारे साथै मोटो होयौ
म्हैं याद करूं धोरे माथे बणायडे
मिट्टी रे कच्चे घरां नै
अर म्हारै मूंगा बेलियां नै!
म्हूं याद करूँ मै रे मामै नै
जकै रो कंवळो परस हुया करेै
प्रेमिका रै पैलै परस ज्यूं!