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दिखा देते हो जब रुख साँवले सरकार थोड़ा-सा / बिन्दु जी

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दिखा देते हो जब रुख साँवले सरकार थोड़ा-सा।
तो भर लेती हैं आँखें शर्बते दीदार थोड़ा-सा॥
ये खिल जाते हैं जब आँसू के कतरे पुष्प बनकर।
खिला देता है दिल में प्रेम का गुलजार थोड़ा-सा॥
जरा मस्ती की झोकों में हिली आँखों तो हिलते ही।
झलक पड़ता है प्यालों में तुम्हारा प्यार थोड़ा-सा॥
चले बिकने ये अश्कों के गुहर मुझसे कह-कह कर।
कि अब देखोगे करुनाकर का बाजार थोड़ा-सा॥
गिरे दृग ‘बिन्दु” धरती पर तो बनकर हर्फ़ यूं बोले।
पतितपावन से लिखवाते हैं हम इकरार थोड़ा-सा॥