Last modified on 30 दिसम्बर 2017, at 15:06

दिन,कई दिन छिपा रहा जैसे / संजू शब्दिता

दिन,कई दिन छिपा रहा जैसे
कोई उसको सता रहा जैसे

ेसुब्ह, सूरज को नींद आने लगी
अब्र चादर उढ़ा रहा जैसे

एक आहट सी लग रही मुझको
कोई पीछे से आ रहा जैसे

हम मुसाफ़िर हैं एक जंगल में
खौफ़ रस्ता दिखा रहा जैसे

उलझा-उलझा सा एक चेहरा ही
सौ फ़साने सुना रहा जैसे

बढ़ गया आगे काफ़िला मेरा
मुझको माज़ी बुला रहा जैसे