भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

दिन उग्यो कूकड़ी बोले रे / राजस्थानी

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

   ♦   रचनाकार: अज्ञात

दिन उग्यो कूकड़ी बोले रे
आई नव प्रभात
गवाँराँ गीगां हंस ल्यो रे
गयी अंधारी रात
नवाँ नवाँ हो झाड़ हाथ ले
सोत्डला में चालो चालो
खेतडला में चालो
अब हिम्मत, अब हिम्मत, अब हिम्मत,
की है बात रे
आयो नव प्रभात
कान खोल के सुण लो जवानो
धरती सोणा निपजे रे,
मेहनत सूँ, मेहनत सूँ, मेहनत सूँ
निपजे रे
गयी अंधारी रात
दिन उग्यो कूकड़ी बोले रे
आयो नव प्रभात