भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

दिन कहाँ वो बहार फूलों के / सुमन ढींगरा दुग्गल

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज


दिन कहाँ वो बहार फूलों के
अब हैं दुश्मन हजार फूलों के

ग़म भी है ज़िंदगी का इक हिस्सा
साथ हैं जैसे ख़ार फूलों के

बागबाँ बात क्या है काँटों की
हर तरफ हैं हिसार फूलों के

कह दो अहले चमन उदास न हो
लाएगी दिन बहार फूलों के

हाय गुलपोशियाँ सियासत में
जान लेते हैं हार फूलों के

लोग काँटों से बच के चलते हैं
हम हुए हैं शिकार फूलों के

सच है चेहरे उतार देता है
उसके रुख़ का निखार फूलों के

कितने दिलकश हैं कितने प्यारे हैं
रंग परवरदिगार फूलोके--