Last modified on 29 सितम्बर 2010, at 17:56

दिन का बीत जाना नहीं है / वंशी माहेश्वरी

शायद बीतना दिन का स्वभाव है
बीत गए कई दिन |

कई दीवारें बनीं टूटीं
खण्डहर
बनते बिगड़ते चलते रहे
साँसों में उतरते....

छोटी-छोटी बातें
धड़कनों में बजती रहीं
स्मृतियों में
डूबती रही
शांति की लय

सहसा
चौंककर आसपास
वे दिन लौट आते हैं
आत्मा में धँस कर....