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दिन जाड़ों के / रमेश तैलंग

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पंख लगाकर आते हैं दिन जाड़ों के।
फुर्र-फुर्र उड़ जाते हैं दिन जाड़ों के।

कट-कट-कट-कट दाँत कटा-कट,
बाहर निकलो धूप सफाचट,
बड़ी मुसीबत लाते हैं दिन जाड़ों के।

गर्म पकौड़े भर-भर थाली,
चाय साथ में भर-भर प्याली,
दे कोई तो भाते हैं दिन जाड़ों के।

हर कमरे में हीटर, गीजर,
सूट, रजाई, कंबल, स्वेटर,
हों तब ही घबराते हैं दिन जाड़ों के।